सुभाष गौतम
युवा कहानीकार अल्पना मिश्र की कहानी संग्रह ‘‘क़ब्र भी क़ैद औ जं़जीरे भी’’ में कहानीकार ने अपने नीजी अनुभव और अपने आस-पास की समस्याओं को कहानी का विषय बनाया है। इस संग्रह की लगभग सभी कहानीयों में गांव के आम आदमी के दुख-दर्द और संघर्ष को दिखाया गया है, जो वास्तविकता के बेहद निकट जान पडता है। इस संग्रह की अधिकतर कहानियों में स्त्री की पीडा और उसका संघर्ष दिखाया है। पहली कहानी ‘गैरहाजिरी में हाजिर’ यह पहाड में आये दिन दुर्घटनाग्रस्त होने वाली यात्री बसों में मरने वाले यात्रीयों के परिवार से उपजी कहानी है। यह कहानी ठीक उसी प्रकार है जैसे जाने वाले तो चले जाते है पर पहाड तो पहाड ही रहता है। इस कहानी में पहाडी परिवार का जीवन और उनके संघर्ष को दिखाया गया है। जिस प्रकार पहाडों के नीचे बहुत सारे राज दबे होते है उसी प्रकार वहां के लोग अपने सीने में बहुत से दुख दर्द छिपाये हुए हैं वे इसके लिए मानो अभिशप्त हो। ‘‘हमने पहले कभी पहाड को इस नजर से नहीं देखा था। खूबसूरत वादियां हमें लुभाती थीं।’’ लेखिका ने पहाड की खूबसूरती के परे जाकर पहाड के दर्द को इस कहानी में बयान किया है।
दूसरी कहानी ‘गुमशुदा’ एक संवेदनशील औरत की कहानी है जिसकी संवेदना और मानवता को उसका पति नजरअंदाज करता है। इंशान कुछ पाने की चाह में मानवता और संवेदना को पिछे छोडता जा रहा है। इस में टीवी चैनलों द्वारा समाज में फैलाए जाने वाले अंधविश्वास को भी निशाना बनाया है। तीसरी कहानी ‘रहगुज़र की पोटली’ जिसमें पोटली कम रहगुजर का जिक्र अधिक है। यह कहानी भी स्त्री विषय पर केंद्रीत है। इस कहानी की जो सबसे खास बात है वह यह कि एक गांव की स्त्री दूसरी शहरी स्त्री से स्वयं की तुलना कर उसके आत्मनिर्भर और सशक्त होने को लेकर कैसी सोच रखती है और किस नजरिए से देखती है। इन तमाम पहलूओं पर प्रकाश डाला गया है। चैथी कहानी ‘महबूब जमाना और जमाने में वे’ कहानी में खबरिया चैनलों और आमआदमी के खौफ को दिखाया गया है। जब भी कोई आतंकी घटना या शहर में कोई विस्फोट होता है तो उसे इलेक्ट्रानिक मीडिया किस नजरिए से देखता है और उस खबर को लेकर पुलिस एक आम आदमी खास कर एक समुदाय विशेष के साथ कैसा बर्ताव करती है। इन सब सवालों को बडे की मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इस आतंकी घटना में उत्तर प्रदेश का कोई छोटा कस्बा हमे दिख जाएगा। इन घटनाओं के चलते मुसलमानों का जिना मुश्किल हो गया है। यह कहानी बहुत पहले लिखी गई है मगर वतर्मान समय में प्रासंगिक नजर आती है। पांचवी कहानी ‘उनकी व्यस्तता’ में स्त्री प्रताड़ना और समाज की एक सच्ची तस्वीर दिखाई है। लेखिका ने एक बहादुर लडकी जो ससुराल की प्रताडना से तंग आकर अर्धनग्न अवस्था में पुलिस के पास जाती है। कहानी में पात्र को बहुत ही सशक्त दिखाया है। यह कहानी हमें जादूई यर्थाथ की कहानी लगती है पर विमर्श के लिहाज से स्त्री के एक सशक्त पहलू को दर्शाती है। छठी कहानी ‘मेरे हमदम, मेरे दोस्त’ इस कहानी संग्रह की सबसे मजबूत कहानी है। घर में दैत्य रूपी पत्ती और दफ्तर में गीदड रूपी सहकर्मी के बीच एक स्त्री सुबोधीनी के मानसिक प्रताड़ना की कहानी है। सुबोधीनी एक तलाकशुदा स्त्री है जिसे हरपल मुश्किलों का सामना करना पडता है। एक स्त्री का जीवन कितना कठिन होता है चाहे वह आर्थिक रूप से समर्थ ही क्यों न हो। एक शिकारी से छुटकारा पाती है तो आगे दूसरा शिकारी खडा मिलता है। सातवी कहानी ‘सड़क मुस्तकि़ल’ जो सडक पर होने वाले छोटे मोटे विवादों की कहानी है। विवाद छोटा है पर लेखिका की इस कहानी को सबसे संवेदशील कहानी कह सकते है। इस कहानी में एक बुढिया है जो एक गरीब ड्राइवर को ठग लेती है। अपनी बात को मनवाने के लिए इतना तांडव करती है कि लोग उसकी बातों में आकर गरीब ड्राइवर को ही दोषी मान लेते है। आठवीं कहानी ‘पुष्पक विमान’ यह कहानी एक ऐसे इंशान की है जो गरीबी के चलते गांव छोड़कर शहर आता है पेट पालने के लिए शहर में हेरोईन और स्मैक बेचने के लिए तैयार हो जाता है। सवाल यह है कि भूख और बेरोजगारी इंशान को इस कदर मजबूर कर देती हैं कि वह गिरे से गिरा काम करने लगता है। आखिरी कहानी ‘ऐ अहिल्या’ यह दो सहेलियों की कहानी है एक बिंदास रहने वाली, दूसरी भोली भाली है।
कहानी संग्रह: क़ब्र भी क़ैद औ’ जं़जीरें भी
लेखिका: अल्पना मिश्र
मूल्य: 200
पृष्ठ: 119
प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
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