Saturday, June 15, 2013

स्त्री स्वाधीनता और आत्मनिर्भरता की कहानी

सुभाष कुमार  गौतम
सुचित्रा भट्टाचार्य का उपन्यास ‘छिन्नतार’ खास कर मध्यवर्ग को केंद्र में रख कर लिखा गया उपन्यास है। छिन्नतार का अर्थ टूटा हुआ तार होता है। यह उपन्यास टूटे हुए रिस्तों कि एक सशक्त गाथा है। यह बेहद ही दिलचस्प उपन्यास है। आज के समय में स्त्री विमर्श पर जो उपन्यास लिखे जा रहे है, उनमें स्त्री-पुरूष संबंध या त्रिकोंणीय प्रेम संबंध ही केंद्रीय विषय होता है। लेकिन ‘छिन्नतार’ उपन्यास इन सब से हट कर लिखा गया उपन्यास है। इस के केंद्र में मुख्यतः चार पात्र है दो स्त्री दो पुरूष। उपन्यास में लेखिका ने स्त्री चरित्र को बहुत ही सशक्त रूप में पेश किया है। स्त्री चरित्र में रिति और तापसी है। पुरूष पात्र शुभमय और सोमदत्त हैं। शुभमय और रिति के दाम्पत्य जीवन के इर्दगीर्द यह कहानी घूमती है। शुभमय पेशे से जज है। जो बेहद कर्तव्यनिष्ठ और अपने पेशे के प्रति इमानदार है। शुभमय और रिति दोनों कालेज के दिनों में एक दूसरे को पसंद करते है और आगे चलकर उनका प्रेम शादी में तब्दील हो जाता है जैसा की बांग्ला समाज में होता रहा है। दोनों का दंापत्य जीवन बहुत ही सुखी चल रहा होता है उनके घर में एक बेटी का जन्म होता है मगर यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकती उनकी बेटी मुनिया की अचानक मृत्यु हो जाती है उनके जीवन में शोक के बादल छटने का नाम नहीं लेते उपर से डाक्टरी जांच में यह भी पता चल जाता की रिति कभी मां नही बन पाएगी। दुख्रः की तीखी चोट सहने के बाद, रिति कविता-लेखन की ओर दोबारा लौट आती है। अपनी मृत बेटी मुनिया को भूलने के लिए ही रिति कविता का सहारा लेती है। इसी बीच उसे धुम्रपान की लत भी पड़ जाती है। शुभमय के तबादले के तीन महीने बाद, रिति अचानक अपनी मां के पास कोलकाता चली जाती है। जहां उसने अपना बुटीक का कारोबार शुरू किया है। कोलकाता में उसके कुछ साहित्यिक दोस्त मीलते है। यह पडाव एक तरह से रिति के लिए दुखों की दुनिया से निकलने में सहायक सिद्ध होता है तो दुसरी तरफ शुभमय के लिए अकेलापन घातक सिद्ध होता है। शुभमय छ¨टे-से शहर में सरकारी क्वार्टर में रहने लगता है जहां वह बैरे, खानसामे अ©र च©कीदार¨ं के बीच एकाकी जीवन बिता रहा है। 

कोलकाता में रिति को अचानक अपने बुटीक के लिए स्थान बदलने का ख्याल आता है और उसे जब पैसों की जरूरत पडती है, तो वह शुभमय से पैसों की डिमान्ड करती है। शुभमय अभावग्रस्त होने के बावजूद रिति की मदद के लिए अपने भाईयों से पैसे की मांग करता है किन्तु वहां से उसे निराशा ही हाथ लगती है। उसूल¨ं पर चलनेवाले जज के रूप में मशहूर शुभमय को अपनी नैतिकता ताक पर रख कर चंद्रचूड जैसे भ्रष्ट वकील से पैसे उधार लेने पर मजबूर होना पड़ता है। इस उपन्यास में मौजूद घटनाक्रम से यह बात साफ जाहिर होती है कि न्यायालय जैसी संस्था को भ्रष्ट लोग कैसे प्रभावित करते है और जज को किस प्रकार गलत फैसलेे के लिए मजबूर कर देते है। इस पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। न्यायालय में मौजूद भ्रष्टाचार को बहुत ही अच्छे ढंग से लेखिका ने प्रस्तुत किया है। शुभमय के जीवन में इस घटना के बाद उथल-पुथल मच जाती है। एक ओर रिति कोलकाता में अपने बुटीक के बिजनेस को लेकर कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो जाती है और दूसरी तरफ शुभमय एकाकीपन के चलते तापसी नामक गरीब युवती के करीब आ जाता है। तापसी एक बच्चें की मां है और उसका पति उसे छोड़ चुका है। जिससे शुभमय प्रेम करने लगता है। दूसरी तरफ कोलकाता में रिति का अपने कवि मित्र सोमदŸा के प्रति प्रेम पनपने लगता है। लेकिन इस उपन्यास का अंत कुछ इस प्रकार होता है कि सोमदŸा को छोड़कर तापसी वापस अपने मायके चली जाती है। दूसरी तरफ रिति सोमदŸा के संपर्क में आने के बाद ही  शुभमय की अहमियत को समझ पाती है कि उसके लिए वह कितना अनमोल है। और सोमदŸा को छोड़कर वापस अपने बुटीक के व्यवसाय में मसगूल हो जाती है। इसमें लेखिका ने स्त्री आत्मनिर्भरता के तरफ इशारा किया है जो स्त्रीस्वाधीतना का सबसे मजबूत पहलू है। यह उपन्यास पाठक और समाज के सामने बहुत सारे ऐसे प्रश्न छोड़ जाता है जो मध्यवर्गीय समाज के लिए आज विचारणीय है। छिंतार बांग्ला से हिंदी में अनुदित किया गया उपन्यास है। इसका अनुवाद सुशीला गुप्ता ने बहुत बारीकी से किया है।

उपन्यास-छिन्नतार
लेखिका- सुचित्रा भट्टाचार्य
पेज-288
मूल्य- 225
प्रकाशन-पेंगुइन प्रकाशन

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