दरिद्रता खत्म हो गयी होती तो दीपावली भी नहीं होती
डॉ.नामवर सिंह से बात चित पर आधारित यह लेख प्रभात खबर पटना संकरण में १३ नवंबर २०१२ छपा था.
हमारे जितने त्योहार है, उनमें एक कड़ी सी है. रक्षाबंधन पहला त्योहार है. रक्षाबंधन का संबंध पुरोहित वर्ग व ब्राह्मणों से माना गया है. बाद में इस त्योहार को स्वाधीनता संग्राम से जोड़ा गया था. बंगाल में लोग एक-दूसरे को राखी बांध कर युद्ध के मैदान में भेजते थे. स्त्रियां और बहनें राखी बांधती थीं. युद्ध के मैदान में जब कोई घर का सदस्य जाता था, तो बहनें उसे राखी बांधती थीं. राखी के बाद दूसरा त्योहार आता है विजयादशमी. इस त्योहार से अनेक किंवदंतियां और कहानियां जुड़ी हैं. हमारे यहां इन त्योहारों को जाति-वर्ण व्यवस्था से भी जोड़ दिया गया है. रक्षाबंधन ब्राह्मणों का और विजयादशमी क्षत्रियों का त्योहार माना जाता है.
दीपावली प्रकाश का पर्व माना जाता है. इसे लक्ष्मी से जोड़ कर भी देखा जाता है, क्योंकि आमतौर पर वणिक समाज दीपावली के दिन खूब खरीदारी करते हैं. वणिक वर्ग वाणिज्य-व्यवसाय करने वाले लोगों का है. इसलिए आमतौर पर दुकानों में, जहां उनका व्यवसाय होता है, दीये जलाये जाते हैं.
त्योहारों के इस क्रम में देखें तो आगे चल कर होली मनायी जाती है. होली एक तरह से नये वर्ष का शुभारंभ है. होली के बाद नया वर्ष शुरू होता है.
हमारे यहां मुख्यत: चार त्योहार हैं. यह ऋतुओं के अनुसार हैं. जैसे वर्षा बीती तो उसके बाद सर्दी आ जाती है. जब सर्दी समाप्त होती है, तो वसंत होता है, गर्मी आने लगती है. होली वसंत का त्योहार है. होली सबका त्योहार है, क्योंकि इसे जाति-वर्ण व्यवस्था के आधार पर शूद्र वर्ण के साथ जोड़ कर देखा जाता है. यह सब परंपराओं से चला आ रहा है, लेकिन सब मनाते है कि यह सबका त्योहार है.
वसंत पंचमी को सरस्वती के साथ जोड़ दिया गया है. यह ब्राह्मणों का त्योहार माना गया है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये, तो यह ऋतु परिवर्तन के साथ भी जुड़ा है.
इन पवरें के पीछे किंवदंतियां और कथाएं जोड़ दी गयी हैं, लेकिन उनका एक प्राकृतिक आधार भी है. विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां दो ही ऋतुएं होती हैं. सर्दी या गर्मी, लेकिन हमारे यहां जो माना जाता है, और जो कल्पना की गयी है, उसके अनुसार बारह माह और छह ऋतुओं का वर्णन किया गया है. बहुत सारा साहित्य ऋतुओं के बारे में लिखा गया है. उस क्रम में दीपावली का भी वर्णन आता है. दीपावली के दिन कुछ लोग लक्ष्मी पूजन करते हैं, तो कुछ जुआ भी खेलते हैं. ये सारी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं.
कुल मिला कर वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद हर आदमी अपने घर में एक बार दीप प्रज्वलन का काम करता है. इसका एक वैज्ञानिक आधार भी है. हमारे देश में 26 जनवरी को राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है. हमारा प्रशासन इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाता है. गणतंत्र दिवस के दिन पार्लियामेंट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रकाश होता है. प्रकाश पर्व एक तरह से उल्लास का पर्व है. राजनीतिक जीवन में देखें, तो आमतौर से यह पर्व आर्थिक, राजनीतिक स्थिति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. आर्थिक संकट के दौर में भी हम इसे प्रतीक के रूप में देख सकते हैं. हमारे जीवन में जो परिवर्तन आते हैं, उनके साथ ही हमारे त्योहारों का स्वरूप भी बदल जाता है. उन परिवर्तनों के संदर्भ में भी दीपावली को देख सकते हैं.
हमारा देश आर्थिक व राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. उदारीकरण के कई प्रस्ताव आ रहे हैं, जिनके कारण स्थितियां बदलेंगी. हमारे देश में व्यक्तिगत पूंजीवाद का बहुत विकास हुआ है. न जाने कितनी कंपनियां लोगों ने खोली हैं. पहले हमारे यहां कुछ गिने-चुने उद्योग घराने होते थे. आज उनके अलावा भी बहुत ब.डे-ब.डे पूंजीपति पैदा हो गये हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भी हमारे यहां दखल बढ.ा है. अनेक राजनीतिक नेता इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जु.डे हैं.
आजादी के पहले और बाद में जिस समाजवादी ढांचे की हमने कल्पना की थी, वह कल्पना ही रह गयी है. उसके समानांतर देखें, तो सरकार के पास जो भी पूंजी है, उसे कल्याणकारी काम में कितना लगा रही है, वह काम हो रहे हैं या नहीं, यह विचारणीय है, क्योंकि उस मात्रा में गरीबी का उन्मूलन नहीं हो सका है. हमारे देश में पढे.-लिखे बेकारों की संख्या लगातार बढ. रही है. बेकारों की एक फौज खड़ी हो गयी है. जिस गरीबी के उन्मूलन का संकल्प लिया था, वह दूर नहीं हो रही है. ऐसे में गरीबों के लिए दीपावली के क्या मायने होंगे?
देश में ध्रुवीकरण हो रहा है. एक ओर ब.डे-ब.डे पूंजीपति तैयार हो रहे हैं, दूसरी ओर झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या भी तेजी से बढ. रही है. यह जो दो छोर दिखाई दे रहे हैं, यह एक नया अर्थतंत्र है. इस अर्थतंत्र को हम लोग अपनी पुरानी परंपरा से जोड़ कर देखें, तो एक ओर बिजली की चमक-दमक वाले मकान होंगे, दूसरी ओर झुग्गी-झोपड़ियां, जहां दिया जलाने के लिए तेल भी नहीं होगा. अमीरी-गरीबी का यह फासला लगातार बढ.ता जा रहा है. ऐसी ही स्थितियों में विद्रोह पैदा होता है. यह स्थिति ज्यादा दिन चलनेवाली नहीं है. दीपावली के दिन यदि शहर का चक्कर लगाया जाये, तो फर्क मालूम हो जायेगा कि दीपावली कहां-कैसे मनायी जा रही है.
दीपावली का साहित्य से बड़ा गहरा संबंध है. महादेवी वर्मा, दीपशिखा महादेवी वर्मा कहलाती हैं. उन्होंने दीप पर बहुत अच्छे गीत व कविताएं लिखी हैं. महादेवी ही नहीं, अधिकतर कवियों ने दीपक को अपने जीवन का प्रतीक माना है. प्रकाश का अंधकार से संघर्ष जारी है. निराला जी की कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ एक सिद्ध कविता है, जो रावण के विरुद्ध राम के संघर्ष को दर्शाती है.
हमारे यहां दरिद्र-खेदन की परंपरा रही है, जिसको आज नया अर्थ दिया जा सकता है. दरिद्रता चली गयी होती, तो दीपावली का त्योहार भी खत्म हो गया होता. यह इस बात का सूचक है कि आज भी हम अपने घर से दरिद्रता दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. महानगरों में यह त्योहार संपत्ति व वैभव के प्रदर्शन का सूचक है. छोटे व्यवसायियों की आमदनी भी इससे जुड़ी हुई है. शहरों में लोग बल्ब जलाते हैं, दीये का प्रचलन खत्म हो रहा है. दीपक और बल्ब में फर्क है. अमीर व गरीब का. संस्कार व असंस्कारी लोगों का. दीपावली को मानदंड मान लिया जाये, तो समाज में विभित्र वगरें का फर्क मालूम होता है. समाज में कितने स्तर है, यह मापक है संपत्ति का.
(सुभाष गौतम से बातचीत पर आधारित)हमारे जितने त्योहार है, उनमें एक कड़ी सी है. रक्षाबंधन पहला त्योहार है. रक्षाबंधन का संबंध पुरोहित वर्ग व ब्राह्मणों से माना गया है. बाद में इस त्योहार को स्वाधीनता संग्राम से जोड़ा गया था. बंगाल में लोग एक-दूसरे को राखी बांध कर युद्ध के मैदान में भेजते थे. स्त्रियां और बहनें राखी बांधती थीं. युद्ध के मैदान में जब कोई घर का सदस्य जाता था, तो बहनें उसे राखी बांधती थीं. राखी के बाद दूसरा त्योहार आता है विजयादशमी. इस त्योहार से अनेक किंवदंतियां और कहानियां जुड़ी हैं. हमारे यहां इन त्योहारों को जाति-वर्ण व्यवस्था से भी जोड़ दिया गया है. रक्षाबंधन ब्राह्मणों का और विजयादशमी क्षत्रियों का त्योहार माना जाता है.
दीपावली प्रकाश का पर्व माना जाता है. इसे लक्ष्मी से जोड़ कर भी देखा जाता है, क्योंकि आमतौर पर वणिक समाज दीपावली के दिन खूब खरीदारी करते हैं. वणिक वर्ग वाणिज्य-व्यवसाय करने वाले लोगों का है. इसलिए आमतौर पर दुकानों में, जहां उनका व्यवसाय होता है, दीये जलाये जाते हैं.
त्योहारों के इस क्रम में देखें तो आगे चल कर होली मनायी जाती है. होली एक तरह से नये वर्ष का शुभारंभ है. होली के बाद नया वर्ष शुरू होता है.
हमारे यहां मुख्यत: चार त्योहार हैं. यह ऋतुओं के अनुसार हैं. जैसे वर्षा बीती तो उसके बाद सर्दी आ जाती है. जब सर्दी समाप्त होती है, तो वसंत होता है, गर्मी आने लगती है. होली वसंत का त्योहार है. होली सबका त्योहार है, क्योंकि इसे जाति-वर्ण व्यवस्था के आधार पर शूद्र वर्ण के साथ जोड़ कर देखा जाता है. यह सब परंपराओं से चला आ रहा है, लेकिन सब मनाते है कि यह सबका त्योहार है.
वसंत पंचमी को सरस्वती के साथ जोड़ दिया गया है. यह ब्राह्मणों का त्योहार माना गया है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये, तो यह ऋतु परिवर्तन के साथ भी जुड़ा है.
इन पवरें के पीछे किंवदंतियां और कथाएं जोड़ दी गयी हैं, लेकिन उनका एक प्राकृतिक आधार भी है. विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां दो ही ऋतुएं होती हैं. सर्दी या गर्मी, लेकिन हमारे यहां जो माना जाता है, और जो कल्पना की गयी है, उसके अनुसार बारह माह और छह ऋतुओं का वर्णन किया गया है. बहुत सारा साहित्य ऋतुओं के बारे में लिखा गया है. उस क्रम में दीपावली का भी वर्णन आता है. दीपावली के दिन कुछ लोग लक्ष्मी पूजन करते हैं, तो कुछ जुआ भी खेलते हैं. ये सारी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं.
कुल मिला कर वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद हर आदमी अपने घर में एक बार दीप प्रज्वलन का काम करता है. इसका एक वैज्ञानिक आधार भी है. हमारे देश में 26 जनवरी को राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है. हमारा प्रशासन इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाता है. गणतंत्र दिवस के दिन पार्लियामेंट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रकाश होता है. प्रकाश पर्व एक तरह से उल्लास का पर्व है. राजनीतिक जीवन में देखें, तो आमतौर से यह पर्व आर्थिक, राजनीतिक स्थिति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. आर्थिक संकट के दौर में भी हम इसे प्रतीक के रूप में देख सकते हैं. हमारे जीवन में जो परिवर्तन आते हैं, उनके साथ ही हमारे त्योहारों का स्वरूप भी बदल जाता है. उन परिवर्तनों के संदर्भ में भी दीपावली को देख सकते हैं.
हमारा देश आर्थिक व राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. उदारीकरण के कई प्रस्ताव आ रहे हैं, जिनके कारण स्थितियां बदलेंगी. हमारे देश में व्यक्तिगत पूंजीवाद का बहुत विकास हुआ है. न जाने कितनी कंपनियां लोगों ने खोली हैं. पहले हमारे यहां कुछ गिने-चुने उद्योग घराने होते थे. आज उनके अलावा भी बहुत ब.डे-ब.डे पूंजीपति पैदा हो गये हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भी हमारे यहां दखल बढ.ा है. अनेक राजनीतिक नेता इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जु.डे हैं.
आजादी के पहले और बाद में जिस समाजवादी ढांचे की हमने कल्पना की थी, वह कल्पना ही रह गयी है. उसके समानांतर देखें, तो सरकार के पास जो भी पूंजी है, उसे कल्याणकारी काम में कितना लगा रही है, वह काम हो रहे हैं या नहीं, यह विचारणीय है, क्योंकि उस मात्रा में गरीबी का उन्मूलन नहीं हो सका है. हमारे देश में पढे.-लिखे बेकारों की संख्या लगातार बढ. रही है. बेकारों की एक फौज खड़ी हो गयी है. जिस गरीबी के उन्मूलन का संकल्प लिया था, वह दूर नहीं हो रही है. ऐसे में गरीबों के लिए दीपावली के क्या मायने होंगे?
देश में ध्रुवीकरण हो रहा है. एक ओर ब.डे-ब.डे पूंजीपति तैयार हो रहे हैं, दूसरी ओर झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या भी तेजी से बढ. रही है. यह जो दो छोर दिखाई दे रहे हैं, यह एक नया अर्थतंत्र है. इस अर्थतंत्र को हम लोग अपनी पुरानी परंपरा से जोड़ कर देखें, तो एक ओर बिजली की चमक-दमक वाले मकान होंगे, दूसरी ओर झुग्गी-झोपड़ियां, जहां दिया जलाने के लिए तेल भी नहीं होगा. अमीरी-गरीबी का यह फासला लगातार बढ.ता जा रहा है. ऐसी ही स्थितियों में विद्रोह पैदा होता है. यह स्थिति ज्यादा दिन चलनेवाली नहीं है. दीपावली के दिन यदि शहर का चक्कर लगाया जाये, तो फर्क मालूम हो जायेगा कि दीपावली कहां-कैसे मनायी जा रही है.
दीपावली का साहित्य से बड़ा गहरा संबंध है. महादेवी वर्मा, दीपशिखा महादेवी वर्मा कहलाती हैं. उन्होंने दीप पर बहुत अच्छे गीत व कविताएं लिखी हैं. महादेवी ही नहीं, अधिकतर कवियों ने दीपक को अपने जीवन का प्रतीक माना है. प्रकाश का अंधकार से संघर्ष जारी है. निराला जी की कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ एक सिद्ध कविता है, जो रावण के विरुद्ध राम के संघर्ष को दर्शाती है.
हमारे यहां दरिद्र-खेदन की परंपरा रही है, जिसको आज नया अर्थ दिया जा सकता है. दरिद्रता चली गयी होती, तो दीपावली का त्योहार भी खत्म हो गया होता. यह इस बात का सूचक है कि आज भी हम अपने घर से दरिद्रता दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. महानगरों में यह त्योहार संपत्ति व वैभव के प्रदर्शन का सूचक है. छोटे व्यवसायियों की आमदनी भी इससे जुड़ी हुई है. शहरों में लोग बल्ब जलाते हैं, दीये का प्रचलन खत्म हो रहा है. दीपक और बल्ब में फर्क है. अमीर व गरीब का. संस्कार व असंस्कारी लोगों का. दीपावली को मानदंड मान लिया जाये, तो समाज में विभित्र वगरें का फर्क मालूम होता है. समाज में कितने स्तर है, यह मापक है संपत्ति का.
सुभाष गौतम
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