Monday, June 30, 2014

                                                             कविता के विकास का संकेत

‘राजेश जोशी स्वपन और प्रतिरोध’ पुस्तक कवि राजेश जोशी की रचना और व्यक्तित्व पर लिखे गए आलेखों का संकलन है। जिसमें अनेक विद्वाने ने उनकी रचनाओं के संदर्भ में अपना मत प्रकट किया है। इन आलेखों में कवि रोजेश जोशी की कविताओं की व्याख्या विविध रूप में की गयी हैं। जिसका संपादन और चयन नीरज ने किया है। नीरज कवित के मर्म को समझने वाले आकादमिक व्यक्तियों में से एक हैं, जो कविता को सराहते है और उसपर गहन चिंतन मनन करते है। युवाओं में कविता के प्रति इतनी रूची बहुत कम देखने को मिलती है। इस पुस्तक के दो खंड हैं,  इसमें लगभग चालीस विद्वानों के आलेख हैं जो राजेश जोशी और उनकी कविताओं को केंद्र में रख कर लिखे गए हैं।
नीरज पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-‘‘विकासमानता की इतनी बड़ी ताकत के कारण ही संभवतः राजेश जोशी ने सबसे अधिक स्मरणीय कविताएं लिखी हैं। ये स्मरणीय कविताएं मात्र ‘मंच लुटू’ नहीं हैं। इनमें सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति कई स्तरों पर हुई है।’’ इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात जो महत्वपूर्ण बात सामने आती है वह यह है कि राजेश जोशी अपनी कविताओं में देश, काल परिस्थतियों को चिंतन के  केंन्द्र में रखकर अपनी कविताएं रचते-गढते है। जो आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जैसी गंभीर समस्याओं पर चोट करतीं हंै।
इस पुस्तक का पहला आलेख ‘‘आंतरिक-राजनीति और राजनीतिक-आत्म का सृजनशील संदर्भ’’  हिन्दी के महत्वपूर्ण आलोचक नित्यानंद तिवारी का है। इस आलेख में वे रघुवीर समकक्ष राजेश जोशी को देखते है। साथ ही उनकी कविताओं को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने कि कोशिश करते है। इस प्रकार वे बाबा नागार्जुन, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय जैसे महत्वपूर्ण कवियों की कतार में राजेश जोशी को पाते हैं। वही उनकी कविताओं में लोक कथाओं, लोकगीतों के इस्तेमाल को उनकी विशेषता कहा है। आगे इस लेख में राजेश जोशी की कविता ‘माँ कहती है’, ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘हमारे समय के बच्चे’ और ‘रैली में स्त्रियाँ’ कविता की गहनता से विवेचना करते हुए लिखा है कि ‘‘राजेश की कविताओं का एक दुर्लभ गुण है कि उसमें समझ के कई स्तर हंै।’’ साथ ही उनकी कविताओं कि तुलना भक्तिकाल की कविताओं से करते हैं।
दूसरा आलेख ए. अरविंदाक्षन का जिसका शिर्षक ‘‘बहुलार्थी यर्थाथ के पुनर्वास की कविता’’ है। इसमें आलेख में राजेश जोशी द्वारा सृजित कविता संसार में लोक से लेकर उत्तर आधुनिक समाज जैसे विषयों की चर्चा कि गई है। कविता ‘‘चांद की वर्तनी’’ पर बात करते हुए अरविंदाक्षन लिखते हैं कि ‘‘कवि कर्म पर जोर देने वाली... कविता अपने भीतर उसी लोक को समेट रही है। आंसू, दुख और चुप्पी के लिए कवि को शब्द ढँूढना पड़ रहा है। यहाँ शब्दों के अन्वेषण का तात्पर्य कविता में अनुभवों को अनुभूति में परिवर्तित करना और उसको सार्थक ढंग से अभिव्यक्त करना भी है। यही कविता की खोज है और जीवन की भी।’’ इस प्रकार इस आलेख में इनहोने बहुत ही सूक्षम चिजों का विश्लेषण किया है।
तीसरा आलेख नंदकिशोर नवल का है, जो संस्मरण की शक्ल में है। इस आलेख में कवि राजेश जोशी की चर्चा कम करते हैं पर भारत भारद्वाज और नंदकिशोर नवल ने अपनी चर्चा अधिक की है। इसी क्रम में चैथा आलेख विश्वनाथ त्रिपाठी का है। जो संस्मरणात्मक होते हुए भी महत्वपूर्ण है। राजेश जोशी की कविता में बिम्ब, प्रतीक के माध्यम से बात कहने की कला की प्रशांसा किया है, साथ हिन्दी कविता और ऊर्दू कविता की बारीकियों को भी बताते हंै।
इस पुस्तक के दूसरे खंड में कवित्रि अनामिका और महान कवि केदारनाथ सिंह के आलेख भी हैं, जो बेहद महत्वपूर्ण हंै। साथ ही इस संग्रह में अजय तिवारी के दो आलेख पहला आलेख ‘तर्कहीनता से लड़ता हुआ स्वप्न’ जिसमें राजेश जोशी की बहुत सी कविताओं की गहन व्याख्या की गयी है। उनकी रचना की चर्चा करते हुए वे  लिखते हैं कि ‘‘प्रयोग की धुन में ऐसी बहुत-सी चीजें हर दौर में राजेश के यहाँ आती हैं और समय के साथ तिरोहित हो जाती हैं। साथ ही युवा कवियों के लिए उनकी कविता को संघर्ष की दिशा बताते हंै।’’ यह आलेख बहुत ही संतुलित और बौद्धिकता से भरा हुआ है, इनका दूसरा आलेख ‘रूचि की कैद से परे’ में राजेश जोशी की पुस्तक ‘एक कवि की नोटबुक’ की चर्चा की है। कुल मिलाकर यह पुस्तक राजेश जोशी और उनकी कविता को समझने के लिए एक महत्पूर्ण पुस्तक है, जिसके लिए नीरज जी बधाई के पात्र हंै।
(सुभाष कुमार गौतम) 

पुस्तकः राजेश जोशी स्वप्न और प्रतिरोध
संपादकः नीरज
मूल्यः 795
पृष्ठः 356
प्रकाशकः स्वराज प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली.
नोट- यह पुस्तक समीक्षा शुक्रवार के जनवरी अंक में प्रकाशित हैं.

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